लेखनी कविता - क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में - फ़िराक़ गोरखपुरी
क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी
क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र[1] में नमनाक[2] हैं पलकें
क्यों याद तेरी आते ही तारे निकल आए
बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए
कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के[3] लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए
शब्दार्थ
1 जुदाई के दुख में
2 आर्द्र,नमी से भरी हुई
3 धुरंधर